डा. विनोद के. गुप्ता
विचारक, लेखक और मनोवैज्ञानिक
हमें जिस प्रकार के संस्कार मिले हैं उनके अनुसार स्त्री की जो इमेज हमारे मन में बनी है वह भोग्या वाली है. हमारे यहाँ जिसे प्रेम की आदर्श स्थिति माना गया है उसके अनुसार – ईश्वर से प्रेम, मातृभूमी से प्रेम और माता से प्रेम. जो कोई अपनी पत्नी को प्रेम करता है उसे हम “जोरू का गुलाम” कहते हैं. जब से “वूमेन – एम्पावरमेन्ट” को राजनीतिक स्तर पर महत्व देने की बयार चली है तब से स्त्री सुरक्षा भी महत्वपूर्ण हो गई है. सब वाक़यात पुलिस की ‘एफआईआर’ का हिस्सा नहीं बन पाते. अन्यथा लिस्ट बहुत लम्बी होती.
मुझसे एक कालेज की लड़कियों ने पूछा, “लड़कियों को अपनी सुरक्षा के लिए क्या करना चाहिए?” मेरा उत्तर था, ‘केवल अपने भीतर की स्त्री को प्यार करना ही इसका सही उत्तर है.’ सबने मेरी बात को बहुत हल्के से लिया. क्योंकि उन दिनों हर कोई सलाह दे रहा था उन्हें अपने पास लाल मिर्च का पाउडर रखना चाहिए और ज़रूरत पड़ने पर उसका इस्तेमाल करना चाहिए. यानी सभी उनको लड़कों का कम्पटीटर बनने की सलाह दे रहे थे.
उनकी सलाह भी किसी सीमा तक सही है क्योंकि लगभग प्रत्येक लड़की मोबाइल पर लगातार व्यस्त रहती है. वह जिस प्रकार के कपड़े पहनती है उसके व्यक्तित्व को गौरवशाली नहीं बनाते. बल्कि उसको आकर्षक बनाते हैं. किसके के लिए? कोई तो है जिसे वह रिझाना चाहती है. यह सब क्या है? “वूमेन – एम्पावरमेन्ट” का दुरुपयोग.
अन्यथा वह नहीं जानती कि स्वयं को प्यार करने का अर्थ होता है – हमारे भीतर ‘इंट्यूशन’ की ऐसी शक्ति विकसित हो जाती है जिसकी सहायता से वह अपनी सुरक्षा बड़े ही आराम से कर पाती है.
उदाहरण के लिए इसे ऐसे समझिए कि मैं चौहत्तर बरस का बूढ़ा हूँ. रात में जब लोकल से एक बजे वापस लौटा तो न तो कोई साथ में था. और न ही कोई आटो वहाँ मौजूद था. मेरे घर लौटने के लिए कम से कम चार रास्ते हैं. मैंने कुछ सोचा और पैदल चलकर कुत्तों से बचता-बचाता अपने घर अदई सर्किल पर स्थित आरंभ काम्पलैक्स पहुँच कर चुपचाप सो गया.
अगले दिन सुबह चौकीदार बताता है, ‘रात किसी को लूट लिया. आप को तो कुछ नहीं हुआ न?’ यह सब क्या है? मेरी इंट्यूशन का कमाल. ऐसा मेरे साथ कई बार हुआ है और हर बार किसी न किसी तरह से मुझे मदद मिल गई है. आप समझ लीजिए कि हम समझते हैं कि सब कुछ हम करते हैं. हमारी यह सोच ही गलत है हमें तो स्वयं को प्यार करना है और अपना काम पूरी ईमानदारी से करना है. बाकी शेष को परिस्थितियों पर छोड़ देना है. मुझे नहीं पता भगवान है कि नहीं लेकिन हमारे व्यक्तित्व का प्रभाव हमारी मदद करता है.
अपने को प्यार करने के फायदे को यहीं तक सीमित मत कीजिए. आपको स्वास्थ्य की सौगात मुफ्त में मिलेगी. बीमारी आपके पास फटकेगी नहीं.
जैसे कंप्यूटर का कोई भी फीचर फालतू नहीं होता. वैसे ही इस साढ़े सात अरब जनसंख्या वाली धरती पर आप भी फालतू नहीं हैं. अपने से पूछिए, “मैं हूँ तो मेरे होने के मतलब क्या हैं?” अपने से लगातार पूछते रहिए. धीरे-धीरे आपको अपने होने के मतलब समझ में आने लगेंगे. जैसे ही समझ में आने लगें उसको वास्तविकता में बदलने की कोशिश शुरू कर दीजिए.
आप समझ लीजिए कि यदि आप विवाहिता हैं और पति आपकी मुसीबत बना हुआ है तो कुछ होगा. या तो वह आपको सहयोग देने लगेगा या फिर आपसे दूर चला जाएगा. इसी प्रकार, यदि आप अविवाहित हैं तो आपको समझ में आने लगेगा कि विवाह से आपको क्या चाहिए? यकीन मानिए आपके भीतर इतनी सामर्थ्य पैदा हो जाएगी कि ऐसा व्यक्ति आपके समीप आ जाएगा जो आपको वह सब दे पाएगा जिसकी आपको ज़रूरत है.
एक बात याद रखिए कि वह भी आप ही के समान आपकी आधी दुनिया का मालिक है. आपको उसे वैसा ही स्वीकार करना होगा जैसा वह है. यदि आपको सुधार का भूत सताता हो तो जो आपकी आधी दुनिया है उसी को अपनी कल्पना की कूँची से सजाती रहिए. आप न केवल सुरक्षित रहेंगी बल्कि क्वालिटी जीवन भी जिएंगी. निश्चित मानिए कि जो अकेलापन आपको आज तंग कर रहा है वह उड़न छू हो जाएगा. इसे अभी से शुरू कर दीजिए. यदि मुश्किल लगे ओ मेरी सेवाएं लीजिए.
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