ऐसा क्यों होता है इसे समझने के लिए हमें थोड़ा धैर्य रखकर चीजों को चार  स्तरों पर समझना होगा.

पहला सच है – जब हमारे अस्तित्व तक सौ खरब यूनिट सूचना चलती है तो हमारी आँख जो इन्द्रियों में सबसे महत्वपूर्ण है वह मस्तिष्क को मात्र एक यूनिट सूचना देती है. इसीको कहते हैं – कानों सुना कच्चा और आँखों देखा सच्चा. हमारे सभी टीवी प्रोग्राम, फिल्म इंडस्ट्री के अभिनेता  इसी सच के आधार पर आम आदमी के दिलों पर राज करते हैं. जबकि हमारा शरीर दूसरी ज्ञानेन्द्रियों की सहायता से प्रति सेकेंड एक मिलियन यूनिट सूचना लगातार ग्रहण कर रहा है. लेकिन यह मस्तिष्क में रजिस्टर तब होता है जब हमारा मस्तिष्क खाली हो और उसके प्रति संवेदनशील हो.

अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि जो लोग अपने साथ अपने बचपन को लगातार चुराकर रखते हैं वे ही इस सूचना का इस्तेमाल कर पाते हैं. इसे आजकल इमोशनल इंटैलिजेंस के नाम से जाना जाता है. लेकिन जो लोग जल्दी ही समझदार और दुनियादार हो जाते हैं वे इस सूचना का इस्तेमाल नहीं कर पाते. क्यों? इसलिए कि इस सूचना को डी-कोड करने के लिए हमें अपने हृदय, फेफड़ों और पेट पर भरोसा करके संपर्क साधना होता है. और इन लोगों की मुश्किल होती है कि इन्हें दुनियादारी में महारथ हासिल करने के लिए लगातार अपने मस्तिष्क को इस्तेमाल करना होता है.

दूसरा  सच – काम, तीसरा सच  – हमारी योग्यता और चौथा – इसका इस्तेमाल.

काम : सभी कामों को चार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है. पहला – जिसके पूरा होने में हमारा कैसा भी दखल नहीं होता. जैसे – दूध का उबलना, यह उबलने के लिए अपना समय लेता ही है. प्रेग्नेन्सी का मैच्योर होकर बच्चे का जन्म, यह अपना समय लेता ही है. किसी क्रिएटिव काम के पूरा होने में लगने वाला समय, यह लगता ही है. ये सभी काम “जीवन सत्य” के रूप में जाने जाते हैं. दूसरे काम – जिनमें हम परफ़ार्म करते हैं, जैसे मैदान में खेलना. जैसे एक्टिंग करना. तीसरे काम – जिनमें अपनी स्मृति (मैमोरी) और प्राब्लमसाल्विंग की मदद से दूसरों के ध्यान को अपनी ओर खींचना. इन कामों को करने के लिए समय को आगे-पीछे किया जा सकता है. चौथे काम – जिन समस्याओं से समाज जूझ रहा है और वे चलती चली आ रही हैं उन समस्याओं को एक निश्चित समाधान देकर समाज को रास्ता दिखाना.

आप पाएँगे कि दूसरी  और तीसरी श्रेणी के कामों को दुनिया में क्रिएटिविटी का पर्याय माना जाता है. जबकि इनका वास्ता मात्र या तो आत्मसुख सुख से होता है या फिर ये दूसरों के मनोरंजन का कारण बनते हैं. हाँ, जो लोग चौथी श्रेणी के कामों में उलझे रहते हैं उन्हें हम शुरू में सनकी कहते हैं. जब वे अपनी मुहिम में सफल हो जाते हैं तब निश्चित रूप से सारी दुनिया उनके गीत गाती है. 

योग्यता : जिसकी मदद से हम अपनी इच्छाओं को पूरा करते हैं. इस दुनिया में अपनी पहचान बनाते हैं – उसे योग्यता अथवा बुद्धि कहते हैं.

योग्यता का इस्तेमाल : (एक) – जो व्यक्ति किसी भी रूप में अपनी योग्यता का इस्तेमाल कुछ करके यानी परफ़ार्म करके करता है. वह कोई खिलाड़ी, एक्टर, झाड़ू लगाने वाला, खाना बनाने वाला, चित्रकारी करने वाला, जीभ से चखकर स्वाद बताने वाला, कैसा भी कलाकार, वाद्ययंत्रों को इस्तेमाल करके संगीत पैदा करने वाला, नृत्य करने वाला, आदि  हो सकता है. ऐसी योग्यता अथवा बुद्धि को चातुर्य (wits) की संज्ञा दी जाती है जिसमें हमारी इंद्रियाँ काम करती हैं. पाँच ज्ञानेंद्रियाँ और छठा मन इन सभी से जुड़े काम चातुर्य की श्रेणी में आते हैं. कुछ जीवन के लिए उपयोगी और कुछ मनोरंजन का कारण बनते हैं. इनमें सारे गुण होने के बावजूद यदि बिर्लिएंस न हो तो ये बिना पहचान के इस दुनिया से चले जाते हैं. इसीलिए आपने सुना होगा ओलम्पिक में देश को रिप्रेजेंट करने वाले खिलाड़ी रेल्वे स्टेशन पर कुलीगिरी करते हैं.

(दो) – जो कोई तर्क का इस्तेमाल करके समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है, अपनी मैमोरी से दूसरों को प्रभावित करता है उसे हम बुद्धिमान कहते हैं. आई क्यू की दृष्टि से जो जितना अधिक अपने सम्मोहन में बांध पाता है उसको हम बिर्लिएंट कहते हैं. बिर्लिएंस की तमाम विशेषताओं के बावजूद जिसके पास भी यह होती है कुल मिलाकर ‘क्या फायदा’ व्यक्ति होता है. पहले कहावत थी आईएएस होने के बावजूद साल में पाँच करोड़ नहीं कमाए तो लानत है. बुद्धि पर किसी का ठेका नहीं होता. कई बार आपने सुना होगा कि चपरासी के घर से करोड़ों की नगदी मिली.

लिखते तो बहुत से हैं लेकिन सबको अवार्ड नहीं मिला करते. एक्टिंग तो बहुत से करते हैं लेकिन सब राजकपूर, दिलीप कुमार, राजेश खन्ना, या फिर अमिताभ बच्चन नहीं बना करते. क्यों? सबके पास बिर्लिएंस नहीं होती. याद कीजिए “कौन बनेगा करोड़पति” जिसमें अमिताभ बच्चन हाटसीट पर बैठकर एँकरिंग करते हैं. कैसे वह सामने वाले को अपने सम्मोहन में बांध लेते हैं? यह सब क्या है बिर्लिएंस का कमाल. इसके साथ ही  आपने अमिताभ बच्चन के बारे में उल्टी-सीधी खबरें भी सुनी होंगी. कैसे उन्होंने अपने काले धन को छिपाने के लिए विदेशों में जमा कराया? ये सब भी बिर्लिएंस का कमाल है. इसी प्रकार जब ऐसे व्यक्ति “विल-पावर” को इस्तेमाल करके देश की समस्याओं को दूर करने की कोशिश करते हैं तब भ्रष्टाचार फैलता है. क्यों? ये सब तभी तक बढ़िया काम करते हैं जब तक परिस्थितियाँ सामान्य हों. कांग्रेस राज को इसीलिए भरष्टाचार के लिए जाना जाता है. वास्तव में जब अनिश्चितता प्रबल हो जाती है तब बिर्लिएंस काम नहीं आती. ऐसे लोग गुरुओं के पीछे दौड़ते हैं. ऐसे में, आसाराम बापू, गुरमीतसिंह राम-रहीम, या फिर और मजे मारते हैं.

(तीन) – अनिश्चितता की स्थिति में जो योग्यता काम आती है वह कछुए की माफिक बहुत धीमी रफ्तार से चलती है. बिर्लिएंट लोग प्रश्नों के उत्तर की तलाश में रहते हैं. दूसरी ओर जिनके पास यह योग्यता होती है वे गाय के समान अपने प्रश्नों का उत्तर खोजने के बजाए उनकी जुगाली करते हैं. कई बार तो इनको पता ही नहीं होता कि वे कर क्या रहे हैं? बस अपने ‘खालीपन’ या कहो ‘खोखलेपन’ का मज़ा ले रहे होते हैं. फिर अपनी क्रिएटिविटी से उस खालीपन या फिर खोखलेपन को इस्तेमाल करके नई ‘इबारत’ लिखते हैं जो एक ऐसा महल बनाती है जो समाज की समस्याओं का वास्तविक समाधान प्रस्तुत करता है. उदाहरण के लिए आइजक न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त ने वैज्ञानिकों को धरती के अंदर छिपे खजाने को एक्सप्लोर करने में मदद की. लेकिन वह दुनिया की सभी ज़रूरतों को पूरा करने के मामले में कम पड़ गई.

अब वे दूसरे ग्रहों की सम्पदा को इस्तेमाल करने की सोचने लगे लेकिन न्यूटन का गृत्वाकर्षण का सिद्धांत इस मामले में उनकी मदद नहीं कर रहा था. सारी दुनिया के वैज्ञानिक तमाम कोशिशों के बावजूद सफल नहीं हो पा रहे थे. ऐसे में अल्बर्ट आईन्स्टीन ने साबुन के बुलबुलों की मदद से इस समस्या का समाधान प्रस्तुत किया. यानी बिर्लिएंस निश्चितता की अवस्था में तो बढ़िया काम करती है लेकिन अनिश्चितता की स्थिति में फेल हो जाती है. अब आते हैं कि हमारे बुद्धिजीवी या फिर पद्मश्री अथवा पद्मभूषण से सुशोभित अभनेता उल्टे-सीधे बोल क्यों बोलते हैं? दरअसाल, कौन हैं ये लोग? जो सही अर्थों में बिर्लिएंट हैं और स्वार्थी हैं. ये तो मीडिया का किया हुआ महिमामण्डन  है जो इन्हें ‘ईश्वर’ के अवतार के समान आदर्श व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करता है. तो जनाब ये अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए उल्टी-सीधी हरकतें करते हैं. दुर्भाग्य से हमारे देश में राजनीति का बोलबाला है इसलिए मीडिया वाले इन्हें टीवी पर दिखाकर अपनी टीआरपी बढ़ाते  हैं. नसीरुद्दीन शाह, आमिर खान, या फिर अमोलपालेकर बिर्लिएंट लोग हैं जनता इनके पीछे दीवानी है इसलिए विपक्ष इन्हें चुनावों में अपने ढंग से इस्तेमाल करता है. इसी प्रकार, हमारे जो बुद्धिजीवी हैं वे भी इसी कैटेगरी में आते हैं क्योंकि इन्हें देश अथवा समाज के ‘हित’ से कोई मतलब नहीं है. बस इन्हें अपने को महत्वपूर्ण बनाए रखना होता है. ये जो भिखारियों जैसे कपड़े पहनना है यह भी इनकी थोथी बिर्लिएंस का प्रदर्शन है. बचपन में एक कहावत प्रसिद्ध थी, “हमें भी खिलाओ, नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे”. दरअसल, ये सभी खेल बिगाड़ने वाले लोग हैं जिन्हें मीडिया  अपने हित साधन के लिए प्रचार देता है. ऐसे ही, विपक्ष अपने को जीवंत बनाए रखने के लिए इनका पाक्स लेता है. लोकतंत्र की विशेषता ही यही है जो मुझे सहयोग नहीं देता, उसे नकारने से मुझे कोई नहीं रोक सकता. और जनता? वह तो रैपटाइल मानसिकता में जीती है. इसलिए जो भी उसे ललचा पाने में सफल हो जाता है उसी को वोट दे देती है.

%d bloggers like this: