दादाजी! आपने अपनी पुस्तक में लिखा है
जानलेवा बीमारियों के उपचार के लिए
दवा और दुआ से कहीं बढ़कर है प्यार.
अब जब हम जानलेवा
बीमारियों के आतंक से पीड़ित हैं
मौत की काली छाया आँखों में मंडराती है तो
महसूस होता है ……
हम जो तमाम जीवन सफलता और पैसे के पीछे भागते रहे
सब बोगस था बेमानी था,
उससे दुनिया का हर ऐशो-आराम तो खरीदा जा सकता है, लेकिन
प्यार नहीं.
दादाजी हम अकेले हैं बेहद अकेले
हम क्या करें?
मेरी आँखों की रोशनी मेरे बच्चों!
ईर्ष्या और द्वेष जीवन की सच्चाई हैं
और प्यार?
इस दुनिया में जीने के लिए,
जीने की इच्छा के लिए,
जीवन को बेहतर बनाने के लिए
बेहद ज़रूरी है.
मेरे शेरों, मेरे लाड़लों!
तुम्हारे संबंधों, तुम्हारे मित्रों में
कोई तो होगा जिससे तुम
अपना मन खोल सकते हो
उससे बातें करो, ढेर सारी बातें करो
कुछ उसकी सुनो कुछ अपनी कहो.
क्या कहा? ऐसा कोई नहीं है
कोई बात नहीं
कोई कुत्ता, कोई बिल्ली, कोई तोता पालो
उससे बतियाओ.
क्या कहा? तुम बिल्कुल अकेले हो
तुम उसकी देखभाल नहीं कर पाओगे.
मेरे देश के भविष्य मेरे बच्चों!
एक छोटा पौधा लाओ
सुबह सोकर उठने पर
रात को सोने से पहले
उससे बतियाओ
वह पौधा भी अपनी भाषा में
तुम पर अपना प्यार लुटाएगा
तुम्हारा हृदय आशा से भर जाएगा.
जानते हो मेरे बच्चों!
तुमने क्या किया?
पौधे से बतियाते, बतियाते
तुम स्वयं से बतियाने लगे
यानी स्वयं से प्यार करने लगे
फिर तो तुम्हारे हाथ वह सूत्र आ गया
जो व्यक्ति को स्वस्थ बनाने में सक्रिय होता है.
धरती माँ के लाडले सपूतों!
अच्छे से समझ लो
मनोवैज्ञानिक क्या करते हैं?
कोरी लफ़्फ़ाजी, अन्यथा
पोटेन्शियल उनके द्वारा पूछे गए प्रश्नों के
जवाब में दिए आपके उत्तरों में नहीं होता
वास्तव में यह आपके स्वास्थ्य का दर्पण है.
मेरे बहादुर शेरों!
मोटी-मोटी धर्म की पुस्तकें
आपको नैतिक नहीं बनातीं, वरन
जो भी इनमें नैतिकता ढूँढता है
उसकी बुद्धि खुट्टल हो जाती है
उनका हृदय कठोर हो जाता है.
समझो मेरे बच्चों समझो!
कंप्यूटर का कोई भी फीचर फालतू नहीं होता
इस सात अरब जनसंख्या वाली धरती पर
तुम फालतू नहीं हो
अपने से बातें करो और स्वयं से पूछो
मैं हूँ तो मेरे होने का ‘मतलब’ क्या है?
मैं हूँ तो मेरे होने का ‘मकसद’ क्या है?
सीखो मेरे बच्चों सीखो!
जैसे ही तुम अपने होने का ‘अर्थ’ खोज पाते हो
जैसे ही तुम जीवन का ‘लक्ष्य’ खोज पाते हो
ज़िंदगी का ‘खालीपन’, ज़िंदगी का ‘खोखलापन’ पूरने लगता है
आशाओं के दीप तुम्हें राजपथ पर चलने का अहसास दिलाते हैं.
तुम्हारे भीतर नैतिकता जन्म लेती है
तुम्हें समझ में आने लगता है
तुम अपने पोटेन्शियल का
बेहतर और बेहतर इस दुनिया को
कैसे लौटा सकते हो?
बात यहाँ पूरी नहीं होती मेरे बच्चों!
असली बात तो अब शुरू होती है
तुम अपनी खोज को वास्तविकता में बदलना चाहते हो
जैसे-जैसे तुम्हारी इच्छा परिपक्व होती जाती है
तुम्हारे भीतर ‘जुनून’ बढ़ता जाता है.
जुनून यानी कोरे सिद्धांत को ‘जीवनोपयोगी
उपलब्धि’ में बदलने वाली बुद्धि
जुनून अर्थात जीवन के लक्ष्य को
‘वास्तविकता’ में बदलने वाली बुद्धि
तुम दिन-रात
भूख-प्यास
सोना-जागना
इन सब से बेखबर
सिर्फ और सिर्फ
फकत और फकत
स्वयं को रीयलाइज करने की कोशिश में
अपना सब कुछ दांव पर लगा देते हो.
महसूस करो मेरे बच्चो!
ये तुम्हारे भीतर का जुनून ही है, जो
तुम्हारे स्वास्थ्य का आधार बन जाता है
ये भी तुम्हारा जुनून ही है
जो तुमसे बेहतर और बेहतर करवाता है.
मेरे बच्चों याद रखो!
भीतर की बायलाजी जब बीमारी की शक्ल में बाहर आती है
दुनिया महज बदबू से भर जाती है
और जीवन में हर कहीं
राजनीति सुपर हो जाती है
शरीर की बायलाजी जब
काम की शक्ल में बाहर आती है
दुनिया में चमत्कार हो जाता है
चारों दिशाओं में
खुशबू और खुशबू महक जाती है
क्यों?
सिर्फ अपने को प्यार करने भर से.
मेरे बच्चों मेरी उम्मीद के सहारों!
सिर्फ अपने से प्यार करो
दूसरों को भी उन्हें स्वयं से प्यार करने का मौका दो
बाकी?
प्रकृति तुमसे वह सब करा लेगी
जिसकी इस धरती को ज़रूरत है
तुम तो बस शरीर की सुनते रहो
और वैसा-वैसा करते रहो. तुम्हारे ‘दादाजी’
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